भगवान पर सोरठा

ईश्वर मानवीय कल्पना

या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

सोरठा17

मूरख रख रे मून

साह मोहनराज

किण विध उतराँ पार

साह मोहनराज

लड़कापण प्रहलाद

रामनाथ कविया

हरी करै सो होय

साह मोहनराज

सब रूठै संसार

साह मोहनराज

राखै जिणनै राम

साह मोहनराज

चित हित सूं कर चाव

साह मोहनराज

अबला बाळक एक

रामनाथ कविया

बीती करो न बात

साह मोहनराज

बैरी पूछै बात

साह मोहनराज

कासूं काज करेह

रायसिंह सांदू

आगै भूप अनेक

रामनाथ कविया

दुख री भली न दाख

साह मोहनराज

हँस कर बोल हमेश

साह मोहनराज