भगवान पर दूहा

ईश्वर मानवीय कल्पना

या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

दूहा14

बंधण हारे बंधेऔ

हरदास मीसण

भौ सागर मन माछला

परमानंद बणियाल

काया मांहि कंवलदल

हरिदास निरंजनी

दोहा : धरम अर भगती

जयसिंह आशावत

राम-राम रसना रटौ

किशनदास जी महाराज

डाल पात फल फूल में

स्वामी आत्माराम

मिनखा देही पाय कर

सांईदीन दरवेश