भगवान पर काव्य खंड

ईश्वर मानवीय कल्पना

या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

काव्य खंड3

दयाल माया द्वादसी

प्रवीण बारहठ ‘सांगड़’

श्री शंकर स्तुति

रामदान बारहठ ‘सांगड़’

हरिरस

ईसरदास बारहठ