म्हारै घरां ई अेक न्यारी दुनिया है
म्हारै अठै लुगायां बड़ा साथै बोलै कोनी
ओलो करै, काण-कायदो राखै, गळी में थमै
आ अेक न्यारी बात है के जद-जद
राड़ री हद पार होवै
ओला-पेटी ओछा पड़ ज्यावै
अर लुगायां साच्याणी म्हनै अरधांगणी-सी निजर आवै।
घर में आदम्यां नै ओ बैम है।
के लुगायां में अकल कोनी
ई सूं ठाडो बैम लुगायां नै है कै
आदमी के जाणै घर सार।
ई सारू घर चलावण में रोज दोनां रै बिचाळै
खींचाताण होवै
अर सगळा घर सांगोपांग चालै।
घर
घर में मैं सूं मोटो है
अर मा अर दादी नै बेरो कोनी के बाण है
बै काम करती-करती अेकली बोलै अर बरड़ावै
जद म्हनै लागै
घर री आखी चीज बां सागै बतळावै।
जे घर नै मरद मानां तो
हारड़ी, रसोवड़ी, साळ, कोठड़ी, बाखळ, छात
सै लुगाया है
फगत आंगणो ई मरद है,
पण लुगायां में रैयनै इस्यो होयो है लुगायां जिसो
के बाबै अर दादै नै
मांय आवता बरजै।
अेक चूल्हो मरद है
पण भींता री ओट में लोगां सूं संकतो
सदियां सूं सेकै रोटी
क्यूकैं बीं नै ठाह पड़ग्यो
के कित्ती'क है बीं री पोटी
जे लुगाई आग ना होवैं।
आ ई गत हारै री है
सिजावै बांटा अर रांधे लापसी
जद म्हैं कैवूं आदमी,
तूं ई अकड़ सूं कद धापसी?
चींपियो मरदानगी में बावळो होयो तो
आग में मुंह बळायो
पण मिरकली स्याणी निसरी
जिकी नै सगळा तकावै कै अेक और घाली
मूसळ, घोटो, चकळो, बेलण
लोटो, भांड, बिलोवणो, देगचो
सगळा बोल्या—
मरद तो मरद ई रैसी
पण मा सगळा रा कान पकड़'र
लगा दिया अेडै...
अब आं रै मन में जरूर है
पण बोलै किस्यो ई कोनी
फगत बाबै री कब्जी कोनी टूटी
बै अजै ई कैवै के मरद तो मरद ई होवै
अर लुगाई, लुगाई!