थांनै म्हैं हेलौ नीं पाड़ सकूं
जद कदै बोलणौ चावूं
गळ मायंला गूमड़ा चीस मारण लागै
नै वां री
पीड़
आखती-पाखती रै
अंगा में पसर ज्यावै...
म्हैं जाणूं कै वै अंग—
फगत म्हारा ईज नीं है
है थांरा ई
समंचै देस रा है
लोक रा है
अर बां रौ दु:ख
दरियाव री ज्यूं
मिनखां री रग-रग में
हिबोळा भरै
रीळां मारै!
थानै म्हैं कोई गैलौ
कोई रस्तौ नीं दिखाय सकूं
जद कदै हाथ उठावूं
भांत-भांत रा
गिड़दाबर नाजम
मै’कमां रा मालिक
मुल्लाजी पंडज्जी
पुणचां में बटका भरण लागै
खूणियां में लटूम ज्यावै
गणराज रा गिरज
रांमदासजी विधांणसबा री आड़ लेय
म्हांरी चांमड़ी में
चीरौ लगावै
घणास्यांमदासजी सिरकार री
सात काखळवायां
लेयनै
म्हांरी काख में मूंडौ काढ़ै
नै हुकम देवै
कै चीरै सूं इलाज नीं बणै
औ हाथ ईज काट द्यौ
बेकांम कर न्हाकौ
‘न पेट रेवै, न पाद बाजै’!
अेक नवीं कैवत रोजीनां
अखबारां में छपै कै
‘टटग्यौ हाथ, छूटग्यौ लंगवाड़ां रौ साथ’!
पण आपां नै
अबै आ समझ आयगी है
कै वै म्हांरै साम्हीं थांनै लंगवाड़ां
नै थांरै साम्हीं
म्हांनै ऊपदरवी रौ खिताब
देवै!
वां रौ छळ-बल वां नै फळै
अपां रै कांई फरक पड़ै?
थें मांय ईज मांय लोवौ घड़ौ
म्हैं भासा नै भोभर बणावूं
थें मन री अदीठ
गळियां-गळियां
म्हांरै खनै आवौ
म्हैं थारैं नजीक जावूं
हाल आपां री आ लाचारी है
पण इण लाचारी में सै’स जणां रा हेला
नै किरोड़ां रा गेला
अेकमेक व्है ज्यावै
क्यूं कै वठै अेक सबळ संगराम री
त्यारी है।