मोहन आलोक
आठवें दसक रा मै'ताऊ कवि-कहाणीकार अर उल्थाकार। 'डांखळा' विधा रा राजस्थानी मांय पै'ला सिरजक।
आठवें दसक रा मै'ताऊ कवि-कहाणीकार अर उल्थाकार। 'डांखळा' विधा रा राजस्थानी मांय पै'ला सिरजक।
आ कुरसी अर बा कुरसी
आप री माया
भासा रो गीत
भाव जिका भीतर है
बिरछ
बुद्धिम शरणं गच्छामि
छोरी
चिड़ी री बोली लिखौ
चूल्है रो गीत
दरखत अर मिनख
देस
धरती री भासा
दिन
जिरह बख्तर
जळ
काल-चक्र
कमरै कमरै
कविता सो है
खास बात
मै’सूसो
म्हैं
मोटो खड़ाणो
ओळ्यूं चन्द्रसिंह जी बिरकाली री
प्रार्थना जरूरी है
प्राण-नदी
संझ्या
स्सै फळसा मोन
याद आपरी