एक छोरी

छोटी सी छोरी

पीळै फूलां रो गुलदस्तो

लियां हाथ मैं नित आवै है

धरती ने नेपै है पग-पग

सौरम सूं महकावै अग-जग

हेरै इतणो लाम्बो रस्तो

हर री नेमत बांटण सारु

रात री कड़ियां काटण सारु

पण फूलां रो, गुलदस्तो

कोई हाथ

नई थामै है।

छोरी,

अन्त निसासू छोरी

थक जावै है बगती-बगती

चुक जावै पैरां री सगती

लायण!

हो’र उदास

रोज री

परलै पार उतर जावै है।

स्रोत
  • पोथी : चिड़ी री बोली लिखौ ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • प्रकाशक : रवि प्रकाशन दिल्ली
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