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मोहन आलोक

मोहन आलोक

  • 1942-2021
  • bikaner

आठवें दसक रा मै'ताऊ कवि-कहाणीकार अर उल्थाकार। 'डांखळा' विधा रा राजस्थानी मांय पै'ला सिरजक।

मोहन आलोक रौ परिचय

जन्म: 03 Jul 1942 | किशनपुरा,भारत

निधन: 19 Apr 2021 | सिरी गंगानगर,भारत

मोहन आलोक राजस्थानी साहित्य में नूवै ढाळै रा प्रयोग अर नवचारां नै लोकजीवण अर मानखै में लोकप्रिय बणावण खातर जाणीजै। अंग्रेजी, फारसी अर पंजाबी भासा रा मोकळा प्रयोग मोहन आलोक राजस्थानी साहित्य में बपराया अर उणांनै सुधी पाठकां री दीठ रै विगसाव सारू अणूंती ऊंचायां माथै पूगाया।

मोहन आलोक रो जलम 3 जुलाई, 1942 ई. में हुयौ। उतराधै सींवाड़े रै जिले श्री गंगानगर रा मूळ रैवासी मोहन आलोक कविता मंचा अर आकाशवाणी रै जरियै आपरी रचनावां नै लोक री जुबान पर चढ़ाई। आप राजस्थानी भासा में ‘डांखळा' नांव री विधा नै बुलंदी माथै पूगायी। नेशनल बुक ट्रस्ट सूं प्रकासित के सच्चिदानंद द्वारा संपादित 'ONE HUNDRED INDIAN POETS' मांय अर 'भारत जोड़ो काव्यो गाथा'(संपादक श्री रामकुमार मुखोपाध्याय) कानी सूं बांगला भासा मांय अनूदित-संपादित पोथी में आपरो देस रै 52 कवियां में ई चयन हुय चुक्यौ है। अंग्रेजी रो छंद सॉनेट मोहन आलोक राजस्थानी में लोकप्रिय बणायौ। आप राजस्थानी मांय डांखळा (लिमरिक), सॉनेट अनै 'रुबाई' अर पंजाबी भासा मांय 'डक्के' (लिमरिक) रा आगीवाण कवि मानीजै। 'संभावित हम' सिरैनावं रबड़ री मोहरा सूं छप्पणवाळी दुनिया री पैली पोथी रो प्रयोग मोहन आलोक ई करियो।

आपरो पर्यावरण माथै रचित प्रबन्ध काव्य 'वन देवी: अमृता' रो अंग्रेजी उल्थौ श्री तुषारकान्त घोष AMRITA: THE GODDESS OF FOREST रै नांव सूं करियो जिणरी भूमिका में पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा इण पोथी नै पर्यावरण पुराण बतायौ है। आकाशवाणी सूरतगढ़ रै हफ्तैवार प्रोग्राम 'मिट्टी दी खुशबू' रै मारफत आपरा पंजाबी लिमरिक 'डक्का पाकिस्तान मांय खूब लोकप्रिय हुया। आपरै रचनाकर्म री अंवरे करां तो आपरी पोथी 'ग-गीत' राजस्थानी साहित्य में खासो महताऊ नांव राखै। 'डांखळा' (पैलो भाग), डांखळा ( शतक पिच्यासी), 'आप' (रुबाइयां)।

'एकर फेरू: राजियै नै' (सोरठा शतक), 'बानगी' नामी कवि री नामी कहाणियां' (संचै नीरज दइया) मोहन आलोक री पोथ्यां है। मोहल आलोक री कवितावां में बात कैवण रो आंटो है, मिनखपणै री पीड़ है अर सांझी संस्कृति री अवधारणावां है। अनुवाद अर संपादन पेटे मोहन आलोक रो गीरबेजोग काम है। आपरी उल्थौ पोथ्यां में 'धम्मपद' 'जफरनामा', 'उमर खैययाम री रुबाइयां', चेखव् री कहाणियां प्रमुख है। मोहन आलोक रा अनुवाद सहज, नैसर्गिक अर परकाया प्रवेस अनुवाद मानीजै। मोहन आलोक रै व्यक्तित्व अर कृत्तित्व री ओळखाण करतां थकां आपनै केई संस्थावा पुरस्कार अरपण करया गया। ‘ग–गीत' पोथी माथै सन 1983 ई मांय साहित्य अकादमी पुरस्कार सूंपीज्यौ। इणी कृति माथै सन 1981 ई. में राजस्थान साहित्य अकादमी रो पृथ्वीराज राठौड़ विशिष्ट पुरस्कार दिरिज्यौ।

मोहन आलोक री सिरजण खिमता अर फकड़ाना सैली राजस्थानी साहित्य मांय एक लूंठी अर सांवठी ओळखाण राखै। समकालीन भारतीय साहित्य रा नवाचार आ नूंवै ढाळै रा प्रयोग मोहन आलोक नै भारतीय सांस्कृतिक दीठ रो प्रखर पुरोधा बणावै। मोहन आलोक प्रयोगधर्मी कवि अर सिल्प री दीठ सूं बेजोड़ रचनाकार हा। भोग्योड़ै अनुभवां रो उत्खनन कर र मोहन आलोक एक अेड़ो रचना संसार बणावै जिण मांय लोक अर सलोक री परंपरावां अकै- सागै पळै-पोखै। लांबी बीमारी रै चालतां सन 2021 नै मोहन आलोक इण भौतिक दुनिया सूं व्हीर हुग्या।