साधो एक अचम्भा दीठा।
कड़वा नीम कहै सब कोई, पीवै जाकूँ मीठा॥टेक॥
बूँद के माहीं समद समाना, राइ में पर्वत डोलै।
चींटी के माहीं हसती पैठा, घट में अघटा बोलै॥
कूँडा माहीं सूर समाना, चंद उलट गया राहू।
राह उलट कर केत समाना, भोम में गिगन समाहू॥
तिण के भीतर अगनि समानी, राव रंक बस बोलै।
उलट कयाल तुल माह समाना, नाज तराजू तोलै॥
सतगुरु मिलै तो अर्थ बतावै, जीव ब्रह्म का मेला।
जनदरिया या पद कूँ परसै, ताहि गुरू मै चेला॥