सुण साथी म्हारा!

छोड़ ही तूं सरवर पाळ

म्हनै...

डबडब आंख्यां लिया

लारै फैंकतो गुठल्यां जामन री।

तकायो घणो म्हैं तन्नै ईयां

जाणै तकावै पाणी नै तिरसो।

हां आंवती ही म्हैं दुकोसो

छैक तापड़ती

थारी मां नै म्हारी मां केवणै री

हूंस लिया रोज।

के सीखणा हा

क्यूं सीखणा हा

जाणै फगत काळजो

म्हारो नै थारो।

तूं देवतो बट

सिणियै री

कंवळी तुगी लेय

गूंथतो डोरियो...

गुंथीजती म्हैं

थारी आंगळ्यां रै लसरकां!

चुभतै कांटां तूं काढतो

म्हारै केणै बोरिया

उलझ्योड़ी झाड़की

उळझ जाती म्हैं

थारी लोही झराण हथाळी

पंपोळ

धर देती बोरिया

हाथ थाम थारो।

बगत भुंइजै म्हारा बेली!

बोरिया आळा

मत जायै अब तूं

दुकोसी पाळ,

मत तोड़ी बोरिया

उळझ्योड़ी झाड़क्या।

सरड़का थारा

चुभैला म्हारै अठै

के तूं चावै म्हैं जोवूं

थारी पीड़,

म्हारी राची मेंहदी में!

स्रोत
  • सिरजक : सत्यदीप 'अपनत्व' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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