हेत अर अपणायत में

गरकाब व्है

आभै सूं उतर आयौ है

पूनम रौ चांद

सम रै धोरै-धोरै

पसरणी है चांदणी!

भखावटै सूं आथण तांई

थां-म्हां सेलांणियां अर

ऊंटां रै पगां किचरीजी

बेकळू रेत रै

जखमां नै पंपोळती

करण ढूकी है

सार-संभाळ...

सूंपती भरोसौ के

वायरै रै ठाडै लेरकां रै परस

रात्यूं-रात भर जावैला

सगळा अर सगळा जखम...

सूरज ऊग्यां रै पैलां

पळका मारतौ-फेरूं

चमचमावैला

उणियारौ सम रौ-

अंजस अर गुमान रै

गोखां चढियोड़ी!

किणी कळावंत रै बांनै

नूंवै सिरै सूं बांचतौ

आपरै फूटकापै रौ औळियौ...

हेत अर अपणायत में

गरकाब व्है!

अगवांणी करतौ

थां-म्हां सेलांणियां री

बिछाय देवैला

पलकां आपरी।

स्रोत
  • पोथी : मुगती ,
  • सिरजक : मीठेस निरमोही ,
  • प्रकाशक : मरुवाणी प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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