आकाश पर कवितावां

आकाश का अर्थ है आसमान,

नभ, शून्य, व्योम। यह ऊँचाई, विशालता, अनंत विस्तार का प्रतीक है। भारतीय धार्मिक मान्यता में यह सृष्टि के पाँच मूल तत्वों में से एक है। पृथ्वी की इहलौकिक सत्ता में आकाश पारलौकिक सत्ता के प्रतीक रूप में उपस्थित है। आकाश आदिम काल से ही मानवीय जिज्ञासा का विषय रहा है और काव्य-चेतना में अपने विविध रूपों और बिंबों में अवतरित होता रहा है।

कविता21

धरती काती प्रीत

राजूराम बिजारणियां

आभै उतरी प्रीत

राजूराम बिजारणियां

किनको

घनश्याम नाथ कच्छावा

मजूर

प्रियंका भारद्वाज

म्हे यूं तो

अम्बिका दत्त

अपणायत

मीठेश निर्मोही

बरसाळो

मघाराम लिम्बा

पग मंडणा

रेवतदान कल्पित

रठ में ठर

सत्यदीप ‘अपनत्व’

आकास रौ रंग

बी. आर. प्रजापति

पांती

मदन गोपाल लढ़ा

बाथ-भर आकाश

नन्दकिशोर चतुर्वेदी

बता बेकळू

ओम पुरोहित ‘कागद’

पृथ्वी

मालचंद तिवाड़ी

हकरत

कैलाश गिरि गोस्वामी

तुणगल्यो अर बूंद

गौरीशंकर 'कमलेश'

हकरत

छत्रपाल शिवाजी

अणथंभियौ आकास

शिवराज छंगाणी

सपना

अर्जुन देव चारण

जी करै म्हारो

संजय पुरोहित