ढळग्यौ है सूरज आथूंणौ

डीगौड़े धोरै रै लारै

आई है गजबण बण सिंझ्या

उतरी है पायळ झणकाती

पग रा धुंघरू भल घमकाती।

बाजै है मधरो वायरियौ

आभै में खींवै बीजळियां

इणी चांनणै अेक निजर

घूंघट में सिंझ्या रति तरै

पट पीळोड़ा पळकाती

लहराती लैहरियो उतरी।

जाणै पिणघट री पिणयारी

जाणै कै

परियां सुरग तणी

जाणै

सपना रै सैंजोड़े

आई है मुळक लिया अधरां।

छांनै सूं देखै घूंघट में

निजरां तिरछी कर एक पलक

गालां पर लाली लाल जमी

लट केसां री लटकाती

लचकाती पतळी कमर सांझ

फूलां सम कंवळे हाथां में

मैंदी लागौड़ी ठीक फबै।

आई है सिंझ्या बणठण नै

आकड़िया पंथ बुहार रैया

निछरावळ कीनी बोरड़ियां

गावै हैं जाळां गीत मधुर

खेजड़ियां ऊभी खिलकारै

चिड़कल्यां बैठी टूळै पर

चहकै मयूरां रै साथ सरस

घोळे है पंखी मिसरी जिम

जीवण रंगां में मधुर-रास।

ऊतरती सिंझ्या देख-देख

कूदै है थळियां पर हिरणां

गायां रै खुरां उडै रज-कण

अंबर व्हैग्यौ है धूंधळौ

इण समै

गोरड़ी सी सिंझ्या

लागै सबनै है फूठरकी।

इण समै

ओपती ओरण सूं

घर कांनी व्हिर हुया ग्वाळा

कांधै घर दैडी कर-गेडी

अेवाळ छांग ले ऊछरिया

मखणौ गा डोरक्यां देता।

दिन भर रा थक्योड़ा किरसा

जीवण में सुखरास लियां

सिंझ्या आतै निकळ गिया

घर कांनी सपना ले सुख रा।

सिंझ्या री आहट सुणता

पिलांण कसीज्या करहळियां

छकड़ा-गाड़ी पर गोळ जमा

जावण नै त्यार हुया माणस।

सांझ-सुंदरी रूप नवै

यूं गजब फूठरी लागै है

नाडी में लाडी सम सुंदर

थिर निरमळ नीर तळाई में

वडभागण बनड़ी सी फाबै।

कंवळी काया री पुतळी

जादूगर रूप तणी जबरी

मन मोहक रूप छवि थारी

अंतस में थापित जन-जन रै

झीणी तांता नै छैड़ रैयी

सबरौ मनड़ौ हरखाय रैयी।

स्रोत
  • पोथी : इण धरती ऊजळ आंगण ,
  • सिरजक : महेंद्रसिंह छायण ,
  • प्रकाशक : रॉयल पब्लिकेशन
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