पीठ पर धूप,

चानणो लारै।

बधै अंधेरै में,

जद मनड़ो हारै।

आर-बार

किरणां नै

मारग नीं सूझै।

सूरज

लूआं रा

लपका पी-पी धूजै।

खाटी चरड़ जिंदगी,

होश कइयां आवै?

दुखड़ा,

जद-जद हाँसै।

मन मुर्दो गावै॥

आँख में लाज,

लाज नै छोडै।

मनचाया विश्वास,

बटकिया बोडै।

पीठ पर धूप,

चानणो लारै।

बधै अँधेरै में,

जद मनड़ो हारै॥

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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