धरती सूरां री जांमण,

धरती संतां री जांमण।

अठै हुया पातळ नै पीथळ,

नहीं मिलै खोजौ भलै सिटल।

राणां सांगा जैमल नै पत्ता,

जुद्ध भौम मांय घणां निखरता।

होग्यौ अठै हमीर हठीलौ,

जगमाल हो घणौ गरबीलौ।

दुरगादास हो जोधौ जबर,

भिड़ियौ दिल्ली जा सेर बबर।

पातळ री बा अरथ निरासा,

पूरी पण करदी भामासा।

दानवीर कोटड़ियौ बाघौ,

जाचक मनां आज नीं आगौ।

ही भौम अमर री जांमण,

चूड़ावत री धरती सागण।

चन्द्रसेन वचनां रौ पूरौ,

भड़ सांतरौ टाळवां सूरौ।

डकैत हो लाखौ फूलाणी,

डूंग जवाहर जेळ फाड़णी।

24 बगड़ावत बांध्यां भड़खांणी,

मोटा डाकू मौजां मांणी।

गौरा बादळ नै मालावत,

मिलणां दौरा अैड़ा सांवत।

झांसौ दियौ एकरसां अकबर,

जैमल भेज्यौ खारौ पड़ूतर।

सिर दियौ जगदेव कंकाली,

दानवीरता भगती पाली।

अठै गाइज्यौ काछब रांणौ,

भळै गावीज्यौ रतन रांणौ।

प्रेमी जुगल महेन्द्रा मूमल,

प्रेम कहाणी पड़ै धूमल।

बाघौ भारमली री जोड़ी,

प्रेम कथा घणी भलोड़ी।

प्रेम कथा ढोला नै मरवण,

हियौ भरीजै गाथा सरवण।

प्रेम कथा सुल्तान निहालदै,

अर कथा मालदेव उमादै।

गायां वा’र गया तेजाजी,

सागै बार गयौ पाबूजी।

पाबू हड़बू देव कहावै,

रांमदेव नै कुण बिसरावै।

मल्लीनाथ हुया मालाणी,

खेड़ मिंदर बणियौ सेनाणी।

पन्ना धाय पदमणी रांणी,

कठै होई अैड़ी छत्राणी।

मेड़तणी मीरां री धरती,

किस्न प्रेम में जीती मरती।

कवि ईसर नै दुरसा आढा,

कवि करमां में घणां प्रगाढा।

इसरदास भाद्रेस जलमिया,

“हाला झाला रा कुंडळिया”।

बांकीदास अर मीसण जैड़ा,

कवि नीं लाधै नैड़ा-नैड़ा।

जसनाथ नै हुया जांभौजी,

भगत कवि अै हुया रज्जब जी।

रज आंण रा बीज इण माटी,

याद करै है—हल्दीघाटी।

सापुरसां रा कमतर भारी,

जलमभौम री बात सुधारी।

धोरां मोरां री धरती,

निबळ सबळ रौ पाळण करती।

पैदा इत हीरा ही हीरा,

जबर जोर हा बळी बडेरा॥

स्रोत
  • पोथी : ऊंडी दीठ ,
  • सिरजक : अस्त अली खां मलकांण ,
  • प्रकाशक : आमना प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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