अळगै देसां थारौ प्रीतम,

थूं उणसूं है दूर घणैरी।

जोजण बिच में घणां मोकळा

बात मिलण री नहीं बणै'री॥

काजळ सार्‌यौ टीकी काढी,

पै’र आभूखण बणगी लाडी।

दरपण में मुखड़ौ देख्यौ जद,

मन में थूं गरबीजी गाढी॥

काजळ सूं कतरावै बौ तौ,

टीकी सूं पण नहीं रिझावै।

अैड़ा गै’णां पै’र बावळी,

प्रीतम नैं थू घणौ खिजावै॥

थूं जांणै नेड़ौ है बेली।

थारौ प्रीतम अळगौ हेली॥

पीवर आय पीव नै भूली,

छिछळां रै थूं पड़गी पानै।

सगळौ ध्यान पीव राखै हौ,

देखा करतौ छांनै-छांनै॥

ओछां री संगत करणै सूं,

डोळ बिगड़ियौ पूरौ थारौ।

जमवारौ भी पूरौ मिटियौ,

मिट्यौ देख मिनखाचारौ॥

उमर कटेला सासरियै में,

पीवर तौ है च्यार दिनां रौ।

कोई भी पण क्यूं सोचेला,

ही है दुनियां रौ धारौ॥

सोची नीं अै बातां पै’ली।

थारौ प्रीतम अळगौ हेली॥

सासरियौ पण लागै प्यारौ,

जांवण रौ भी मन है थारौ।

बांध लियौ पण मोटौ बारौ,

भारौ प्रीतम नै खारौ॥

उजळी साड़ी प्रीतम दीनी,

उणनैं थूं कर दीन्ही मै’ली।

बा ही ओढ़ सासरै चाली,

घणी मूरख तूं है अधगैली॥

अब किण विध होवै उजळी,

किण विध इणरौ मै’ल हटेला।

किण विध थूं नैड़ी जावेला?

भोळी थारौ मांण घटेला॥

साड़ी अब रहसी मै’ली।

थारौ प्रीतम अळगौ हेली॥

त्रिगुण फंद में अैड़ी उळझी,

सुध बुध खोगी सैंग बावळी।

कद काजळ आंख्यां में काढ्यौ,

कद खणकाई करां कावळी॥

कद थूं ब्यावां में फातीजी,

कदै मायरौ-कौड मनायौ।

यूं करतां करतां ही गै’ली,

देख जमारौ अकज गमायौ॥

रिमझोळां में अैड़ी रमगी,

साड़ी रौ कीं ग्यांन रयौ नीं।

कामळ ज्यूं ज्यूं भारी होवै,

इणरौ भी कीं ध्यांन रयौ नीं॥

ध्यांन नहीं राख्यौ थूं पै’ली।

थारौ प्रीतम अळगौ हेली॥

चांद सूर इण घट रै मांही,

अणहद री झणकार सुणावै।

अस्ट कमळ दळ चरखौ चालै,

जबर जोर नीसांण घुरावै॥

सुखमण नार चेतणां करती,

हो जाता थारा पौबारा।

महल अटारी कदै पड़ती,

कदै पड़ता अै चौबारा॥

ध्यांन नहीं राख्यौ थूं गै’ली,

अब प्रीतम मिलणै रौ नांहीं।

आवगमण भी मिट्यौ थारौ,

सोच करै थूं दिल रै मांहीं॥

जीवण थारौ बण्यौ पहेली।

थारौ प्रीतम अळगौ हेली॥

स्रोत
  • पोथी : ऊंडी दीठ ,
  • सिरजक : अस्त अली खां मलकांण ,
  • प्रकाशक : आमना प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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