वो दौर

बदळाव रो दौर हो

हवा-पाणी बोली-मिनखां रो बदळाव

काळो-घणों काळो

हाड़ तोड़तो, अजगरी कसाव

सरणाटो-मौत-लाव-लाव।

उण अंधारै दोर मांय

काळस में गमियोड़ी दीठ

अंतस में बळती अगत

बदळाव री लागी लगन

जावण वाळा जावै हा

आवण वाळा आवै हा

कोई रूठै हा, कोई मनावै हा

लासां रै ढेर रै बिच्चै कोई

जठै रा जठै रैय जावै हा।

काळस में गमियोड़ी दीठ में

नीं दीखतो धरम-करम

नीं सूझती सरम-बेसरम

राती होयगी भींता-काळी रीतां

छत-आंगणों, टूटोड़ी बाड

छरवाजो-सामान-सब कबाड़

टगन रे हवालै

धुंआ-धुंआ ठौड़-ठौड़ अंधा कुआ।

कळझळतै अंतस में

पसरण लाग्या केई-केई सवाल

अैड़ी आंध्यां वाळी अंधारी रातां क्यूं आई?

किण दिस बाजै इज बायरो बतूळियो?

किण दिस-सूरज-चांद-तारा?

कैवण री आजादी-पण अफरातफरी में

घर-आंगणां गळियां-चौबारां ?

सूनी सड़कां बदरंग होंवती झूंपड़ियां

काळा रंग सूं पुत्योड़ा सगळा उणियारा ?

काळस में गमियोड़ी दीठ

दिखत रा लोग-मिनखां सूं न्यारा ?

इत्ती लाम्बी रात

दम तोड़ती गुफावां रा जाळ

गमता मारग, घायल पग, टूटती सांसां

रोसणी रो अकाळ।

काळो अंधारो

लीर-लीर-लीतरा व्हैतो

रिस्ता रो पतियारो

जीवण-मिरतु रै बिच्चै फंस्योड़ी

बात-बात री बात-करामात

बिछुड़तो-बिगड़तो साथ

किणनैं छोडूं-किणनैं पकड़ूं

बस झूंपड़ी हूं पड़ूं-पड़ूं अबै पड़ूं।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2017 ,
  • सिरजक : रमेश मयंक ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी ,
  • संस्करण : अङतीसवां
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