रमेश मयंक
चावा कवि-लेखक।
चावा कवि-लेखक।
आज री नारी
आंतरो
आपणो घर
बगत बाकी है
बणतौ बांध : तीन चित्राम
बायरो, पाणी अर आकास
बीज
बीतियोड़ा बगत में नारी
दरद
दीठ रो आंतरो
धरती री मुळक
दूजी लहर
जस
झील रो पाणी
जिन्दगी
काळस में गमियोङी दीठ
कारज
कविता
किण नै कैवूंगा ?
मौत
म्हारी पांती रो सूरज
नुंवो वातावरण
ओ बगत लाचारी रो है
फूल तोड़बो मना है
पिंजरै में पंछी
रंगां रौ संसार
रेत रा चितराम
रोटी
सगळां नै नमस्कार
सीख
सूखी नदी
सूखग्यो रूंख
टापरी
ठौड़
टिमटिमाता दिवलां री जोत