बीतियोड़ा बगत री नारी

पड़दा-घूंघटा में लिपटी

अ-अनार रौ नी जाणती

रसोड़ा मांय चूल्हौ-चौको

फाचरी-छाणां भूंगळी साथै

जिंदगाणी बितावती

आंख्यां-धुंवाड़ा सूं

आंधळाय जावती

जिंदगाणी छाणां री भांत

कजळावती,

सासू-नणंद रा ताना तौ

सासरिया रा गीत-गाणा

घट्टी, परिंडौ, पिणघट

पाणी रौ बेवडौ

हमेस काम दर काम

बंधुआ मजूर सरीखौ अंजाम

कुण समझी

उणरी कुंठा-दरद

सिसाड़ा रा इसारां नै

अपमान-धुतकारां नै

वा चिड़ी-चुप्प

गरदन नीची-अंधारौ गुप्प।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : रमेश ‘मयंक' ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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