थूं गेलै-गेलै आवणियो

थूं गेलै-गेलै जावणियो

कबूतर सरीखो भोळो

पण-वो मन सूं काळो

ऊजळा-ऊजळा गाभां वाळो

कारीगर बातां रो

खजानो कुचमादी करामातां रो

जाणै बम रो गोळो है।

भाईड़ा-कीं नीं जाणै

उणरै पेटै कितरो पाप है

वो कड़ी कायरी

जैर उगळणियो पीवणो सांप है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : रमेश मयंक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर