काल जका

म्हाणी आंख्यां रा तारा हा

आज म्हां उणां रे

दिल रा छाला हो गया।

काल जका म्हाणैं मुंडे रा

कवा खावता हा आज म्हां

उणां रा मोताज

वे रोटी देवणआला हो गया।

काल जका

म्हाणैं कांधे उपर

पळता हा वे आज

म्हाणैं पालणवाला होयगा।

काल जका

म्हाणीं आंगळी पकड़’र

चालता हा

आज म्हें उणां माथै बोझ अर

वे बोझ उठाणआला होयगा।

काल जका

म्हाणैं आसरे हा

बगत साथै आज

म्हैं बित्यौ काल अर

वे आज होगया।

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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