उदासियां बोवैगा तो

उदासियां काटैगा

ओळातियां को पाणी

मगरै थोड़ी चढै छै...

बगत-बगत का मोती छै

बगत कढी फेर होग्या कथीर

कालचिड़ो चुग जावै छै

सारा का सारा नोंसर-हार

सारो जीवण

देखतां-देखतां ई!

फेर कतनी सांच दिवाओ

कोई नीं मानै

हथेळियां पर कतना

उगवा लो अमलतास

पण जहरीला पाणी सूं

नीं आवै सौरम का फूल...

च्यारूंमेर फिर देखलो

सारा का सारा जग में

प्रेम में छै वा ताकत

जो समरथ नै बी झुकबा नै

मजबूर कर दे छै

नीं तो कठै सुदामा में

ताकत छी किसन सूं

पग पखारण री अर

सूखा चावल खाबा की

छप्पन भोग नै छुड़ा’र,

विदुर को लीलो साग खाबा की!

तूं अब नीं समझै तो तूं जाणै

प्रेम तो खेल छै समरपण रो

लोक लाज छोडबा रो

जस्या रुकमणी छोड़ आई छी

अर राधा नै तज दी छी लाज...

देख मीरा बावळी होगी

ले मंजीरा

अस्या म्हनै बी

तज दी लाज की चूंदड़ी!

स्रोत
  • सिरजक : मंजू किशोर 'रश्मि' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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