ओ बगत
बीमारी-लाचारी-महामारी रो है
घणा हुयग्या परेसान,
नीं सुरक्षित जान, नीं जहान
कोरोना संक्रमण कर रैयो
सगळा रा काम तमाम।
सगळी आड़ी नूं मिनख
दु:खी दरद सूं निरास
फैर भी
मन रा किणी खूणां मांय
नुवीं ठौड़, नुवीं उम्मीदां री
जगायोड़ो आस।
सबद री हुवै आपणी परम्परा
बची रैवै उम्मीदां
जिनगाणी कोनी मरे
मिनख कोनी हारे
घावां रे भरता पाछो
चुनौतियां ने ललकारतो
ऊभो हुय जावै।
सांच है
आपदावां रे कारणे सरणाटो है,
पण, मून टूटेगा,
खिलता सौ पांखड़ियां वाला
कमल सूं रगत वरणी आभ फूटेगा
क्यूं’क हाल तांई मिनख री
जिनगाणी सारू गैरी आस है,
कांकड़ ने पार करणे रो
हिवड़े हुलास है।
धीरे-धीरे
सुद्ध-ताजा होवण लाग्यो पवन
निथर’र अर कांच री भांत
साफ निजर आवण लाग्यो जळ
सौरम सूं लकदक धरती
बगैर बाधावां वाळो साफ आकास
देख’र पटरी पे आवण लाग्यो
आमजन मांय बिस्वास।
चिन्तावां मिटावण सारू
जैरीला बायरा वाळा
वायरसी कचरा ने
माचिस री तीळी चेतावता
अगन रे हवाळे करां
ममताळू धानी आंचल सूं
धरती राणु बणां।