किणी रो दुख नीं है घणो

किणी रो सुख नीं है कम

फरक दीठ रो है

ओय-हाय करण सूं

जे निवेड़ो हुवै दुखां रो तो आव

म्हैं भी कूकूं थारै सागै

नीं जणै

बांट सुख

दुखां में मत हो दूबळो

कुणसा दोनूं रैवणा है

हरमेस

रैवणो है भरोसो

रैवणी है आस

रैवणौ अंजस

रैवणी है आपरै हुवण री हूंस

फेर कांई दुख

अर कांई सुख

परभात पछै रात अर

रात पछै परभात आवणै जियां है दोनूं

इण सूं बेसी इणां री कांई गत

कांई औकात..।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : आरती छंगाणी ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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