च्यारूमेर

ऊकळतो अणथाग ऊन्हाळो

सूळां-सी खुबती

आकरी किरणां

चौफेर रा लीरा-लीरा करती

लू

अमूजै नै अधगावळो करता

बतूळा रा गोट

सैर

गांव

अर ढाण्यां बिच्चै

अेकल उडती

धूड़

फेर काळ पडग्यो इण मुलक में

खुलग्यो फेरूं

फैमीना रो काम—

जमीं नै आदमी अणखावणो लागै।

चौगिड़दै पसर्‌या

अलेखू धोरा री घमघेर में

गम्योड़ा गाव

म्हारै चेतै मे चक्कारा मारै

डबडबती आंख्या में

बळतै पाणी रा तिरवाळा,

गूंगै ताडै में तड़भड़ती

आधै तावड़ै री तीठ

नागै चामड़ै-हाडा मे

बुझती आखरी सासां

बेर्‌यां—

पाणी रो परियागो सोधै

बळेती

लाय—फेर काळ पडग्यो इण मुलक में

खुलग्यो फेरू

फैमीना रो काम

तिरस अर पाणी रै बिच्चै आंतरो बधग्यो

हरमेस

तिड़की में धोरां माथै

धूजण लागै रेत

दीठ में पसरै

—रेगिस्तान

ऊजट में

डाडै डांगर-जीव

जिनावर मरता माटी खाय

मिनख रै हीयै फूटै

हेज

निस्कारां बिच्चै

इत्ती लांबी जेज?

अै सिड़ता घाव—

मांदो लखाव

—फेर काळ पड़ग्यो इण मुलक में

खुलग्यो फेरूं

फैमीना रो काम—

जीवण अर मिरतू रो धोरी अधगैलो व्हैग्यो।

कदै-कदास

आधी रात रै सरणाटै

काळी जाळां रै जंगळ में

कोई घघूड़ो घूंकै

चररावै कोचरी

अळगी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : नंद भारद्वाज ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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