न्याव रा मिंदर मांय

ऊभी देवी

सुण तो सकै पण

देख कोनी पावै

उणरै सागै

कितरो न्याव हुयो

वा किण सूं पडूत्तर पावै?

जो फैसला में कोनी लिख्यो

उणरो पतियारो किस्तर लेवूला?

जो अणलिख्यो अणकथ्यो है

वो म्है किण नैं कैवूंगा?

जो जन सेवा सारू निकळै

उणां रै सागै

कितरो जन सेवार्थ रैय जावै

पथ राज री तरफ

खिंचतो जावै

पछै- सुविधा रो संसार है

हाथ आयो औसर तो

बैवती गंगा में डुबकी लगावण रो

विचार है

तन-मन-धन

कोरो अपणों पण

लाचार होवता लोकहित रो दरद

म्है किस्तर सेतूंगा

वायदो-भरोसो टूटतो रैयो तो

वो- म्है किण नैं कैवूंगा?

जद

सड़क पै संत निजर आवै

सगळ्या सीस नवावै

पण धरम रै नांव पै

चालता कुत्सित कारोबार पै

कुण आंगळी उठावै?

कोई अणूता कारोबार नै देख'र भी

म्है चुप रैदूंगा?

गंदगी-बीमारी बधती रैयी तो

इलाज सारू

किण बैद री सलाह लेवूंगा

सुखद भविस्य अर सुरग री बातां

बचावण नैं

म्हैं किण नैं सागै लेवूंगा?

म्हारो साथ निभावण नैं आपणों

किण नैं कैवूंगा?

म्हानै याद है-

उण चेहरां री रंगत

जिणां रा हक छिनग्या है

जो अंधारा मांय जीवता

दमघोटू वातावरण भोगता

परग्या पण

जुबान कोनी खोल पाया

हक हासिल करणैं खातिर

आवाज कोनी उठा पाया

उणां री पीड़ री पड़तां

कुण लिखसी? कुण बांचैला?

म्है कांई

कोरी उडीक करतो रैवूंगा?

अर समै री धार में बैठूंगा

कद

प्रार्थना सुण'र

स्वीकार करण रो सपन

सांच होवतो देख लेवूंगा

धरती पै भगवान आवै

अर सहाय करै है

म्है- किण नैं कैवूंगा?

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : रमेश मयंक ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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