वीं री आंख्यां रै अगाड़ी तितल्यां-सी उडण लागगी। आंसूड़ा री तितल्यां। वीं आपरौ मूंढौ हथेळ्यां मांय लुका लियौ। वा डागळै माथै गयी परी क्यूंकै आंगणै रौ सरणाटौ वींनैं सतावण लाग्यौ हौ।

आज दिनूगै सूं ही वा उफतगी ही। आपरै परिवेस अर सांच सूं। उण सांच सूं जिणरौ लखाव वींनैं आज पैली दफै होयौ कै वा आपरै धणी री लुगाई कोनी, साथण कोनी, वा तौ खाली अेक भोगण री चीजबस्त है। इण बात वींनैं घणौ दुख दियौ। उणरै काळजै में बात घड़ी-घड़ी बांवळियै रै तीखै कांटै ज्यूं खुभण लागगी।

वींनैं आज पैली दफै इण बात रौ पण लखाव होयौ कै कुदरत मिनख सूं बगावत करै चायै वा बगावत धूड़ रै ढिगलै ज्यूं भलां मिट जावै पण वा होवै पक्कायत है। कदैई-कदैई अैड़ा पण पल जलम लेवै है जिकै रौ लखाव किणनैं कोनी होवै।

आज अैड़ा पल छिन वीं रै अर वीं रै घरवाळां रै बीच जलमग्या हा। अचांणचक अर अनायास। उण बगत वा जुंझारू बणगी ही अर सगळी मांन-मरजाद नैं लांपौ लगायनै चिरळाय पड़ी ही— थां मांय अेक मिनख कोनी। सगळा जणा कसाई हौ। थे म्हनैं कळपाय-कळपाय मारणी चावौ पण अबै म्हासूं थांरा धमीड़ा कोनी सैवीजै। म्हनैं थांरै बीच रैवणौ कोनी।” वीं रीस में आपरी सासू नैं डाकण अर घरवाळां नैं डाकी कैय दियौ।

तद वीं रै धणी वींनैं कूट नांखी। वा फूंफाय परी अेकांत में बैठगी।

सिंझ्या ढळण लागगी। राख जैड़ौ धुंधळौ अंधारौ धीमै-धीमै लालर जिस्यौ होयग्यौ। गांव रै काचा-पाका घरां रै डागळै माथै चांनणै रा आखरी टुकड़ा नटखट टाबरां री तरियां नाठण लाग्या।

वा उण सगळां नैं जोवती रैयी। कद अंधारौ घणौ गैरौ होयौ अर कद दीयां-चिमन्यां अर लालटेण रै चांनणै री टीकियां चमकण लागी, वींनै मालम नीं पड़ी। वा तो ओळूं री खुभण सूं बावळी ही। उण में डूबोड़ी ही।

वींनैं याद आयौ कै दसवीं रौ इमतांन देवणै सूं पैलां वींनैं ठा लागगी ही कै वीं रो ब्याव तय होयग्यौ है। वा अचंभै में भरगी अर वीं मांय रौ मांय बेगै ब्याव रौ विरोध पण करियौ कै वा जद तांई दसवीं पास नीं करलै तद तांई ब्याव नईं करैली। इण बात सूं घर मांय तूफांण मचग्यौ अर वीं रै मां-बाप सोचियौ कै आपरी बडी बैन ज्यूं किणी बेजातियै सूं कचैड़ी में जायनै ब्याव कर लेसी।

बात सौ टका सांची ही कै वीं री बैन आपरै भायलै सागै नाठगी ही। इण रौ कारण वीं री बैन रौ भावुक मनड़ौ हौ अर वीं री बैन नैं ठा लागगी ही कै उणरौ ब्याव ठेठ गांव रै अेक छोरै सूं होय रैयौ है जिकौ अंगूठा छाप है। परचूंण री दूकांन में पुड़ियां बांधै। अैड़ी स्थिति में वा आपरै सुपनां नैं कियां रोस सकै ही? वा महानगरां में जलमी, बडी हुई अर भणी...।

वीं री बैन जद आपरै बाप नैं आपरै मन री बात बताई तौ बाप धरती आभै नैं अेक करतौ थकौ बोल्यौ, “थारौ माथौ खराब है। म्हैं बांमण रौ जायौ, म्हारी बेटी नैं अेक धोबी नैं परणावूंला?”

वीं री बैन बतायौ, “मिनख खाली मिनख होवै। वींनैं जात-धरम सूं नीं, गुणां सूं पिछांणणौ चाइजै। वो आखिर प्रोफेसर है। म्हैं वीं रै सागै सोरी-सुखी रैवूंली।”

पण बाप नीं मांनियौ। तद बडी बैन अपणै आप ब्याव कर लियौ।

अर वा?

इण सवाल सूं वा बिंध-सी गई कै वा आपरी बैन रै पगलियां माथै नीं चाल सकै। पण उण रा माइत घणा सावचेत होयग्या अर वीं रौ ब्याव कलकत्तै सूं आयनै बीकानेर मांय झटापट कर काढियौ।

वा सगळै ब्याव में अेक मूरती री तरियां रैयी। अेक निरपेख अवस्था ही उणरी। ब्याव रै पछै वा नापासर गांव आयगी। धोरां रै बिचाळै बस्योड़ो वो गांव। वींनैं माडांणै घाघरौ, ओढणौ अर कांचळी-कुड़ती पैरणी पड़ती। टीकै री रात वीं री भावुकता मरगी जद वीं रै धणी आवतै वीं रै डील री लूटखसोट चावण लागग्यौ।

वींनैं ठा लागगी कै वा अेक जिन्स है जिकै नैं वीं रौ धणी भोगै। धणी क्यूं, सैंग रा सैंग घरवाळा भोगै। सासू... सुसरौ, देवर, जेठ, जेठांणी...! तद वींनैं लागतौ कै वीं रौ कोई आपरौ कोनी। वा अेकली है, वा आपरै लोगां में अणसैंधी है।

सांचैली वा आपणां में अजनबी होयगी। कदैई-कदैई वींनै लागतौ कै वा आपरी लास नैं कांधां माथै खुद उठायनै ढोवै है। स्थिति वीं रै वास्तै बडी कोजी ही। अेक मिनख खुद आपरी लास नैं उठाणै रै लखाव में पचियै ज्यूं कुळतौ जावै। फेर अेक रै पछै अेक टाबरां रै जलम सूं वीं रौ तौ सत निसरग्यौ। जद कदैई वीं रै मूंढै सूं खीरां जैड़ा बळबळता बोल निसर जावता तौ सगळै घर में रोळारप्पौ मच जावतौ अर उणरी बैन री तरियां वीं माथै घर सूं नाठ जावण रौ भूंडौ आरोप लगा दियौ जावतौ। वीं रै पीरैवाळां नैं कोजी-कोजी अर अणूती बात्यां कैयी जावती। वा आपरै काळजै नैं आपरी मांयली बासती सूं बाळती रैवती! अंगीठी ज्यूं धुकती रैवती। पण वा तौ नाठती अर वीं रौ धणी वीं री भावनावां नैं सैलावतौ। सायत वा अबै मां बणगी ही अर वीं रौ आपरै नेन्हा-नेन्हा चार टींगरां सूं जुड़ाव होयग्यौ हौ। वा सोचती, “मायड़ थारी कित्ती मजबूर्यां हुवै?”

घणौ गैरौ अंधारौ पसरग्यौ हौ। तारा दूखणियां ज्यूं लाग रैया हा। विचारां में डूब्योड़ी नै बगत री सुध नीं रैयी।

किणी टींगर रौ कूकणौ सुणीज्यौ। वा हड़बड़ाय’र उठी। सोचण लागी, “म्हारौ छोटोड़ौ लाडकंवर कूक रैयौ है। वा निरबळ होवण लागी। मांय सूं गळण लागीं। जुड़ाव री पांख्यां पसरण लागी।... वा जावती-जावती थमगी अर खुद नैं फिटकारां देवती बोली, “जद परणीज्योड़ौ सुख देवै कोनी तद जायोड़ा के सुख देसी?”

तद वीं रै धणी हेलौ पाड़ियौ, “सुणै है, छोटोड़ौ मुन्नौ कूकै। अबै रीस नैं थूक’र घरै चाल परी।”

वीं रै धणी रै अेक हाथ मांय लालटैण ही अर दूजे हाथ में छोटोड़ौ मुन्नौ। वो बाड़ै रै मांय खिंडियोड़ी घास माथै पग राखतौ वीं रै कनैं आयौ। वीं रै दारू पियोड़ौ हौ। वीं री आंख्यां मांय लील जावण री बासती ही। वो कित्ती देर तांई वीं सूं हाथाजोड़ी करतौ रैयौ, फेर धिंगाणै वींनैं पकड़’र घर लेय आयौ। धणी वीं री गोदी में छोटेड़ै मुन्नै नैं दे दियौ... टाबर रोवतौ रोवतौ चुप होयग्यौ।

वींनैं आपरी स्थिति अर अेक लुगाई री नियती माथै रोवणौ आयग्यौ। वा बसर-बसर रोवती जावती अर सोचती जावती कै लुगाई रौ जमारौ बिरथा है! खाली गोलीपै रै वास्तै है!

वीं रा सगळा टाबर आयनै वीं रौ घेराव कर लियौ।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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