डागळी क’ छाज’ कबूतराँ को जोड़ो,
म्हूँ निरखण लागी कबूतराँ को जोड़ो॥
अतनी सी बात माँ न’ बाबुल सूँ जा’ क्ही,
बाबुल न’ हाथ पेळा’ करबा की साधी,
घुड़ल’ पलाण बीरा उगणी दिशा ली,
म्हार’ भर चूमट्यो मुळक गई भाभी।
गूटरगूँ बोल्यो कबूतराँ को जोड़ो। र’ डागळी क’ छाज’…
घणाँ राजी बीरा बावड़ घर आया,
सातूँ सहेल्याँ मिल मंगल गाया,
भाभी ब’ठाण म्हार’ सीगसा कराया,
डोढ्याँ शहणाई नगारा गरणाया।
गूटरगूँ बोल्यो कबूतराँ को जोड़ो। र’ डागळी क’ छाज’…
बीरा लाया सोनाँ रूपाँ का ये गहणाँ,
बेसड़ला सींव’ काक्याँ ब’ठी अे अंगणाँ,
छूट्या हे राम लाडी फूत्याँ का रमणाँ,
कांचली का बूँत लिया भाभी न’ कसणाँ।
गूटरगूँ बोल्यो कबूतराँ को जोड़ो। र’ डागळी क’ छाज’…
सावली उतार म्हँ ई पडळो पहरायो,
हाथाँ म गजदन्ती चुड़लो खँचायो,
पाँवा राची मँहदी मुखेश मँडायो,
स्वागण्यां न’ मांग म्हार’ हिंगळू भरायो।
गूटरगूँ बोल्यो कबूतराँ को जोड़ो। र’ डागळी क’ छाज’…
काचा पाका बाँसां को मं’डो जे रोप्यो,
बाबुल को द्वार पेळा तोरण सूं ओप्यो,
हिवड़ा न’ थाम म्हारो हथळेवो सौंप्यो।
पेळा को यो पूत म्हारो परमेश्वर होग्यो।
गूटरगूँ बोल्यो कबूतराँ को जोड़ो!
र' डागळी क’ छाज’ कबूतराँ को जोड़ो!