हरी करै सो होय, जो कुछ सुख दुख जगत में।

कम बढ हुवै कोय, चतुराई सूं, चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, इस संसार में जो कुछ भी सुख या दुख है, वह (कर्म-फलानुसार) ईश्वर करता है, वही होता है (अभिप्राय यह है कि सुख-दुख ईश्वराधीन है) (मनुष्य की) चतुराई से इसमें तनिक भी कोई घटत-बढ़त नहीं हो सकती।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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