हरी करै सो होय, जो कुछ सुख दुख जगत में।
कम बढ हुवै न कोय, चतुराई सूं, चकरिया॥
भावार्थ:- हे चकरिया, इस संसार में जो कुछ भी सुख या दुख है, वह (कर्म-फलानुसार) ईश्वर करता है, वही होता है (अभिप्राय यह है कि सुख-दुख ईश्वराधीन है) । (मनुष्य की) चतुराई से इसमें तनिक भी कोई घटत-बढ़त नहीं हो सकती।