साह मोहनराज
उत्तर मध्यकाल रा चारण शैली रा प्रमुख जैन कवि। नीति काव्य सूं सम्बंधित सम्बोधन परंपरा री चावी रचना 'चकरिया रा सोरठा' रा रचैता।
उत्तर मध्यकाल रा चारण शैली रा प्रमुख जैन कवि। नीति काव्य सूं सम्बंधित सम्बोधन परंपरा री चावी रचना 'चकरिया रा सोरठा' रा रचैता।
आज हि नहीं अबार
आवत दुख इकसार
आयुस भर आराम
बचणौ मुश्किल बात
बैरी पूछै बात
बखत जावसी बीत
भली बुरी जो बात
भूंडो अपणो भाग
बहुत बुरी है बात
बिपत पड़्यां री बार
बिपता बुरी बलाय
बिरला होवे बीर
बीती करो न बात
छिन में देसी छोड़
चिंता खोटी मार
चित हित सूं कर चाव
धन, तन, गिटसी धाम
दुख में दोसत दोय
दुख री भली न दाख
एक न फळै उपाय
घड़ी घड़ी घड़ियाल
गुण बिन करै गरूर
हँस कर बोल हमेश
हरी करै सो होय
हिम्मत तब ही होय
होणहार रो हाल
जबर जबर जोधार
जबर जबर जोधार
झूठो है जग जाळ
जित तित देख्यो जोय
खडियाँ ऊसर खेत
खरी कमाई खाय
किण विध उतराँ पार
क्या राजा क्या रंक
लागी जिणरै लाय
मांगी मिळै न मौत
मेटै दुःख मुरार
मूरख रख रे मून
नहिं विद्या धन
नशा जगत रा नीच
पूरब पुण्य प्रताप
प्रभु कीनी प्रतिपाळ
रैन दिनां मत रोय
राखै जिणनै राम
रावण सरखो राव
सब दिन नहीं समान
सब जानत संसार
सब रै होत समान
सब रूठै संसार
समय न चूकौ सैण
संपति चली न साथ
श्याम राखजो साख
सुपना सम संसार