जयाचार्य 1803-1881 Marwar जैन धर्म रे तेरापंथ धर्म संघ रा चौथा आचार्य। मूल नांव जीतमल हो, जय नाम सू साहित्य लेखन करता।
भू सम जय! गंभीर चतुराई चित चिंत धर धन्नो चित धीर जय! अंतिम जगदीश जय! खिम्या वर टोप जय! निज-आदि सुजोय जीता! जनम सुधार जीता! निज दुख जोय क्रोध-अगन उपसंत स्नेह-राग संताप स्तुति जश और प्रशंस उलझ्यो काल अनाद वेरी मान विखेर