जीता! निज दुख जोय, कुण कुण कष्टज भोगव्या।

अब दिल में अवलोय, ज्यूं सुख लहियै शासता॥

स्रोत
  • पोथी : आराधना (आत्म संबोध) ,
  • सिरजक : जयाचार्य ,
  • संपादक : युवाचार्य महाप्रज्ञ ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती लाडनूं
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