सवैया4 अंजन मंजन कैं दृग-रंजन आजु मैं देखी है गोपसुता मुख रैनि समैं सलिता मधिमैं स्यांम-सरीर लसै पट पीत
कवित्त6 एक समैं हरि राधिकासौं चन्द्रकों चकोर ज्यौं दिवाकरकों चकवाक जा दिनतै लगे नैंन तिहारे प्रीतिके उपायनसौं भांति भांति भायनसौं भोर पति संगते ससंक अंक ‘जोर आली’
दूहा8 अपनैं हितकौ अहित जहं गौरबरन गंभीर तन जाकै देखत सुनत होय मंद हांस्य जानहुं प्रथम मीठी बांनी मुखि लयें