संवैया छंद16 अंजन मंजन कैं दृग-रंजन आजु कछूं बलि राधिकासौं आजु कहौं फिरि काल्हि कहौं आजु मैं देखी है गोपसुता मुख आज लसै ब्रजनारी सबै
कवित्त10 अैसी यह रीतिसौ लुभानै एक समैं हरि राधिका सौं चन्द्र कों चकोर ज्यौं दिवाकर कों चक्रवाक चन्द्रकों चकोर ज्यौं भोर पति संग ते ससंक अंक ‘जोर आली’