
बुद्धसिंह हाड़ा
बूंदी रा शासक। पिंगल रा रीतिकालीन सिरै आचार्य कवि।
बूंदी रा शासक। पिंगल रा रीतिकालीन सिरै आचार्य कवि।
आज लसै ब्रजनारी सबै
आजु कछूं बलि राधिकासौं
आजु कहौं फिरि काल्हि कहौं
आजु मैं देखी है गोपसुता मुख
अंजन मंजन कैं दृग-रंजन
हौं पठई कबकी मत लैंन
जा दिन तैंभये रावरैं मांन
केती मजूरी सुधारी कमांन
मंद भयौ पियकौ मुख चंदसौ
प्रातहुतै मुख पांन दये नहि
राधेसौं आजु कछु नंदनंदन
राधिके रोसमैं आजु लखी
रैनि समैं सलिता मधि मैं
रातिके जागतही बृजचंद
रावरी बातैं सुभायकैं भायसौं
स्यांम-सरीर लसै पट पीत