वै

मिनख अर मुलक

दोनां नै चबाय’र

मरजादा सूं मसखरी करै।

वै

जुग रै हरेक

जुंझारू सांच नै

सत्ता सूं

सूरज रै समचै ठुकवाय’र

रात रै अंधारै में

सियाळिया री खाल ओढ्यां

साता पूछण जावै।

वै

कुटुम-कबीलै नै

गाळियां अर गोळियां सूं ‘पाळै।'

वै

सोसण रै जरियै सासण

अर सासण रै जरियै सोसण कर

समाजवाद री ‘साखी’ रचै।

वै

आदमी नै

आदमियत सूं लड़वाय’र

मगरमछिया मातम मनावै।

वै

भूख अर भगवान रै बिचाळै

भाग्य री ताकड़ी लटकावै

अर अंगूरी लटकै सूं

सपड़-सपड़ माल गटकावै।

वै

जीवण री जोत में

जैर मिलाय’र सैण बणै।

वै

आवती पीढियां री पौध माथै

बड़-सा तणै।

वै

मैणत अर मजूरी नै

‘दौड़ मिन्नी कुत्तौ आयौ’ रौ

खेल खेलावै

नीवां बदळण सारू जावता

जवानां रा जुळूस रै सामेळै में

गधेड़ा लावै

पसेवै रा पापड़ बटतौ

सुगना रौ बेटौ सूरज्यौ पूछै—

वै कुण है?

बिलोवणै री

पाकी पीड़ में रिणकतौ

पारबती रौ पुणच्यौ पूछै—वै कुण है?

वोटांळा बगसा में

फड़फड़ीजतौ

चितबगनौ हुयोड़ौ

कागद रौ पुरच्यौ पूछै—वै कुण है?

वै कुण है? वै कुण है? वै कुण है?

स्रोत
  • पोथी : अपरंच (अंक-4) ,
  • सिरजक : राजेन्दर बोहरा ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : जुगत प्रकासण, मेहता भवन, कबूतरां रौ चौक, जोधपुर
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