रात
दिन री
पोथी पर
चढ़ियो
काळो कवर!
जनता री आवाज
चौखट कसियै
काच लारै
भिणभिणआवती
छटपटावती
माखी!
साच
अमावस
रो
चांद!
भौ
संचानणै
डर जाऊं
खुद री
छिंया सूं!
संस्कृति
बिसरा रैयी
हथेळयां
मैन्दी रो
रचाव!
पतियारो
नीं रैयो
पतियारो
डावी आंख नैं
जीवणी पर!
आतंक
खुद रा हाथ ई
डरै
आपस में मिलता !
राष्ट्रीय पर्व
कलैण्डर
छपियोड़ा
लाला चौखाना!
चेतना
राख-धुंवै
घिरी
चिणगारी!