कांच,
थारा म अस्यो कांई पावे
जीसूं लोग थारे मांय
घूर-घूर कर देखबो च्हावे।
बोल्यो कांच—
“म्हारे भीतर सांच री आंच,
जींने लोग देखे अर् जाणे
पण पिछाणबो कोनी च्हावे
दोगलो मिनख,
म्हनै अर् सांच नै
झुठळाबा सारूं बार-बार
म्हारे मूंडे सामी आवे।”