बतूळियै रौ फूस

अंवेरता फिरां

छाजलै में मिनखापण रौ

छाणस रळकावां

आपौ खोय

अपणायत रै बांथीड़ा भरां

भेळा रवां सगळा

ज्यूं बोदा बांस

अेक पळ खड़खड़

दूजा छिण भड़भड़

नरकवाड़ौ भुगतां

गुमेज में गाल बजावां

ईसकै रौ

बैर-बादखाई रौ

गुत्थौ खेलां

अेड़ै मेळ री सल्ला करां

छेड़ै धूं-दोफारै लाय लगावां

झैर अर धूंवै सूं हळाडोळ

सदी

हाथौहाथ बदी रौ परचौ देवै

इण रै बख में आयौड़ा

पूठा नीं बावड़ सकै

टखणां तोड़ै मोट्यारां रा

करड़ावण में

काचा कंठ मरोड़ै

कीकर कोई इण नै नावड़ सकै

कुण उजाळै में जांवण दियौ

वीं रौ रूप

फाट्यौड़ा दूध री ज्यूं फीकौ लागै

खटास रा चींथरा बगावै

परभात रै मंगळ मौ’रत में

कुण चीसां काढ़ै

ऊगती कूंपळां नै

खुरप्यां सूं वाढै

धौळा गिदरां री आड़

काजळ रा कूंपला ल्हुकावै

भूंडौ बगत

दिन-रात म्हांरै पसवाड़ै में

रसोळी ज्यूं कुळै

‘पिरथी’ नै बिरथा

‘भोभर’ नै गोबर केवै

गेलै बगतौ

पुंणचौ पकड़ै मौसा मारै

ठाडौ सांगी

कदै पलीत

कदै जमदूत रौ भेस धारै

धिंगाणौं कर

खोळै बैठ

स्यांन रौ पांणी उतारै

कित्ता झाड़ागर बुलावौ

टूणां-टोटका करावौ

आपां रौ विखौ नीं टळै

काळजै माथै

खरण-खरण तेल रौ कड़ावौ

छळगारौ

मरजाद रा छूंतका तळै।

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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