अरे चिड़कला!
ई बंजर धरती में
काईं चुगै रे थूं?
दरद री बैवाई
फाटगी मन में,
काळजै की जमीं में
दरस की तिस को
तावड़ो जळा'र
बानी कर रैयो छै...
कायासिंगड़ा में
तेल बीतग्यो
जळ री छै बस
मन में आस की बाती
यादा रो हंसो
मार-मार चांच
हेर रैयो छै
परेम का
छिछला पाणी में
थारी सूरत की-सी
सीपड़्यां में
परेम मोती..!