कागद कोरो बांचके, जाण पड़्या सै हाल।
हिवड़ै में उमटी घटा, भावां रो भूंचाळ॥
नैणां में सांवण बस्यो, बरसै निसिदिन नीर।
सपनां रो जाग्यो हियो, जगी आस री पीर॥
बाट थकी, आँख्या दुखी, जुग बीत्या तप आंच।
कद तक झळ में बाळसी, बता बता पी! साँच!!
काग उडाती धण फिरै, हुया सुगन भी झूठ।
बादळिया पाछा मुड़्या, सूनी च्यारूं कूंट॥
लू सी लपकै, झळ उठै, हिवड़ै ला त्रास।
तिरस्यो मन जद धापसी, बीं दिन री आस॥
प्राण-पपैया बोल मत, कुण सुणसी आ कूक।
मन-बसियो भी नां सुणै, हियै बस्योड़ी हूक॥
मन री पोथी में लिख्या, गिण्या अणगिण्या गीत।
तन री माटी में बसी, सौरम जेड़ी प्रीत॥
कोरै कागद पर पड़्या, आंसूड़ा दो च्यार।
गीली आँख्यां बांचसी, दुख सींच्या उदूगार॥