हां, म्हां

केई बार हवा में उठाया हा हाथ

क्रान्ति रै वास्तै

पण हर बार

म्हांरै हाथां नै काट-काट’र

फैंक दिया ग्या हा

आरम्भ सूं ही मनै विस्वास हो

के अंधारो छंटेला

अर रोसणी उगैला सूरज

पण म्हांरै विस्वास नै लीलग्यो

अेक दन भयानक अंधारो

अर सूरज

कणी अपाहिज री तरै रैंगतो थको

सेठ री तिजोरी मांय कैद होग्यो

बात नी कै

म्हारै हिरदै कदी कविता नी जनमी

वा जनमी है अणगिणत बार

अर अेक सुतन्तर नागरिक री भांत

सरपट भागती री है

अेक हाथ में रासन रो थैलो

अर दूजै में किरासिन रो डबो पकड़्यां

अर म्हैं

चांद सूरज री बाट नालतो-नालतो

मर मर’र जीवतो र्‌यो।

स्रोत
  • पोथी : हिवड़ै रो उजास ,
  • सिरजक : कमर मेवाड़ी ,
  • संपादक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • प्रकाशक : शिक्षा विभाग राजस्थान के लिए उषा पब्लिशिंग हाउस, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै