सुळ सुळियो पड़ग्यो म्हारा बापू

घरकै मुठ्ठी धान में

मिनखजूण जद घास चरैली

रेत रळैली मान में॥

हिलगी नींवां थारै घर री

थोथ बापरी ठोड़ांं-ठोड़ां

पड़ै कांगरा धरती माथै

काची कूंपळ तोड मरोड़

अण चाइजती घास ऊगसी

घुणियो लाग्यो धान में॥

धान-धिणापो पड़ग्यो पासै

धींगा मस्ती छाई है।

मिनख-मिनख रो बैरी बणग्यो

आछी आफ़त आई है।

मिनख मोत री बाट तकै जद

माटी पड़सी मान में॥

जुग सतरंगी शतरंज माथै

म्हे बिछियोड़ी मोरां हां

चाल चालणी कोनी आवै

घणा मना में दोरा हां

पैदल मात अनाड़ी हाथां

रेत रळैली श्यान में॥

फिरै टसकता भूखां मरता

माटी हाळा जीवरे

जोवन बिकतो फिरै बजारां

मिनखपणै री सींव रे

'लाजां' लाज मरै जिण धरती

माटी पड़सी मान में॥

स्रोत
  • पोथी : जूझती जूण ,
  • सिरजक : मोहम्मद सदीक ,
  • प्रकाशक : सलमा प्रकाशन (बीकानेर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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