कच्ची दारू रै भभकै दांई

पसर जावै झूंपड़ी माथै दिन

जाग जावै गळियां में

गळियां आर जाळियां

उणरौ मजूरी माथै जावण रौ

बगत व्हेगौ पण वौ

कालै रौ गयोड़ौ

हाल पाछौ बावड़ियौ कोनी

अै ऊंची इमारतां सरू कर दी

झूंपड़ियां नै कस-कसर मारणी ठोकर

बारै निकळियां पछै वौ

बण जावै ‘मेटाडर’ के जोकर

गरीब री भूख

फाटोड़ी चप्पल में चुभती

कील ज्यूं

अस्टपौर बणायां राखै

एक चुभाव

तुलसी व्हौ के कबीर

पेट बजाय’र हाथ पसारतौ

आयगौ दरवाजै

पण वौ पाछौ नीं आयौ

हाल तांई कालै रौ गयोड़ौ!

संसार-त्यागी

संसारियां बिच्चै बैठ’र

सुणावै अमर-वाणियां

झेर में के टेर में

हिलती रैवै घांटियां

ऊंचै घर री मेड़ी माथै बोलै उल्लू

चुल्लू उण बड़ी नाक सारू छोटी

आखती-पाखती री हरियाळी

कैद वांरा कैक्टसां अर मनीप्लांटां में

हरेक काल में

दुख निबळ ने खींचै

राजवी पीळी-हुळक गंगा में

सिनान कर सींचै

खुद रौ बागीचौ

वौ है, के हेत रा चिणा बांटतौ फिरै

वै है के उणनै चिणै रै

छिलकै जित्तौ नीं गिणै

खबरां रौ खुणखुणियौ हिलावतौ

आयगौ आज रौ अखबार

वौ, काल रौ गयोड़ौ

पाछौ बावड़ियौ कौनी।

उणरी कोई खबर नीं छपी अखबार में

अर नेताजी नै

उणरै(?) कल्याण री योजना सूं फुरसत नीं

यूं इज

तूटता रैवै आदरसां रा रूंगता

ऊगता रैवै रूंतोड़

अंग अधर व्है जावै

वौ है के दवा अर दुआ बिच्चै

झोला खावै।

दिलासां री अफीम चटाय’र

हींडावै राजनीती—‘सोजा बाबू सोजा रे थोड़ौ मोटौ व्हेजा रे!’

पण इण बाबू नै कदैई मोटी नीं व्हेण दै

नोट अर सोट रै इसारै

वोट न्हाक’र बाबू खुद नै सरकार मान

राजी व्है जावै।

बात घऱ-गवाड़ री व्हौ के देस-परदेस री

पढ़ै-सुणै खुद नीं समझै

पण दूजां नै समझावै

अबै वौ पाछौ आवै तौ कीं सुणावै।

बौ रोजीना काम री तलास में जावै

तद उणनै लखावै—

जिकां कनै काम है

वै करै कोनी

जिका करणी चावै

वांनै मिळै कोनी।

छपियोड़ी व्हौ के कोरियोड़ी

के भलांई घड़ियोड़ी

रपटवां गोळायां अर

मूंडै भरीजतौ पाणी

कद तांई व्है अदीठ

कांणी री राणी सूं खेंचाताणी

अर रोजीना अेक तस्बीर तिड़काय दै

नामचीन पैलवान

समाज रै दुरग माथै रैवै

अस्टपौर पोहरौ

किणी चाल रौ चीरतौ लखाव

मांवौमांय चूंटबौ करै

बोटी व्हौ के नों व्हौ

गिंडक हाडकी चूसबौ करै।

‘मीट’ सबद रौ

न्यारी-न्यारी भासावां में न्यारौ-न्यारो अरथ

मांस के मिलौ के निजर के लूण

टाबर नै अरथावतौ मास्टर

बगत रो भाटौ सिरकावै अर पूछै—

‘कली में कली?’

छोरा कुचमाद रौ कांकरो बगावै

के छिपकली!

मास्टर री आंख्यां घड़ी सूंअर

छोरां रा कान घंटी सूं चिपियोड़ा रैवै

बेटा रै स्कूल जावणौ बगत व्हेगौ

पण बाप कालै रौ गयोड़ौ कठै रैगौ?

कळंक री कमी नीं व्है

कळंकी अवतार नीं लै

पाप कोई घड़ी कोनी के भर जावै

लोभ कोई जीव कोनी के मर जावै

समझ जावै नकली दांत

कित्तौई खावौ ताव

नीं घटैला बिदामां रा भाव

मुसीबतां

घर-घर गळी-गळी मारै वे भाव

आव, आव!

कालै घर सूं निकळियोड़ा गंगाराम

काम घणौ बाकी है थारौ

पूरौ करण बेगौ आव।

स्रोत
  • पोथी : जुड़ाव ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : धरती प्रकाशन ,
  • संस्करण : 1
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