स्यात ढळती रात री बात

जोर-जोर सूं

बावण लागी आवाज

चेतन हुयगो धरती रो कण-कण

तलवार अर बंदूक लेय'नै

भाग्या कीं लोग

धरती माथै बिखरग्यो खून

उण री आंख सूं चाल्या चौसारा

उण बखत

माच्यो अैड़ो घमसांण

उण रो काळजो धूज्यो

लोप हुयग्या

चांद अर तारा देखतां-देखतां

मां री आंख में आंसू देख’र

उण री गोद सूं उछळ्यो

उण रो नानू लाल

देखतां-देखतां

सोयगो पाछो मां री गोद में

मां रोई अर हंसी।

उजळी कीरत सूं

चमकतै भाठै-भाठै में छिपगो

उण रो तेज

मां रै अखूट हेत नै अंवेरण

भागी पाछी भीड़

धरती री आवाज

अब नंगारे में बदळगी

फरूकी सूरापणै री धजा

च्यारूं कूंट

करण लागी मां अरदास

सूनी गोद सारू

भोळी मां नी जाणै

कांई फेरूं आसी

जोर-जोर सूं आवाज

अर माचैलो घमसांण

पछै धरती

बुझती आग री गळाई

ठंडी पड़गी

नंगारै री आवाज

ढह्योड़ै चबूतरै साम्है

ऊभा लोग

अंदाज करता सा कैवण लागा

स्यात या देवळी

किणी जूंझार री है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थळी – राजस्थानी मांय लोक चेतना री साहित्यिक पत्रिका ,
  • सिरजक : गोरधनसिंह शेखावत ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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