फाट्योड़ा में कठै कारी लागै

इण वास्तै परथम

ध्यांन देय देस रौ

विधांण बांच्यौ

हाथूं हाथ लोकसबा रौ

मेळौ देख लियौ

पण म्हांरी बूढ़ळी ढ़ांणी रौ तौ

नांव-निसांण कोनी हौ वठै

अबै म्हैं

किण खुणै

उमेद रौ नक्सौ खोलूं

अर उणरी पुड़तां

में अपणास रै उखळ-डुखळ ठायै री

जाच करूं

घोड़तां रै ब्याव में

सुर साधै हा स्याळिया

नै लगाय आलथी-पालथी

दे-दे दड़ूं कै हा कागला कूकरिया कुमांणस

कांणी बींदणी दरसावै ही

काजळ रा कोतक

नै काळस री ब्याण

काळी हांडी में धरै ही दत्त-दायजौ

भरमां रौ

अै रब-ढ़ब देख

म्हैं बा’रै आयौ नै बांझड़ी रै

पेट में बड़ग्यौ

वा चिरळी मार नटणी री गळाई नाचण लागी

नै जांणगी कै कांई व्है जापै री पीड़

अर म्हारौ भविस!

भींतां नै किंवाड़ां रै भचीड़ भचीड़!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकासण, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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