सपना

नीं राखै

परकोटां री कांण,

बारै जलमै

पसरै...

थूं

वांनै घर में

क्यूं लावै मा!

घटतौ बधतौ रैवै

आंख सूं आभै रौ

आंतरौ...

कचेड़ियां करती रैवै

न्याव

भुजाळा म्है

रोड़ राखां थनै

गेडियां रै पांण!

बांध देवां,

बींध देवां

ठौड़-ठौड़ सूं...

थूं देह धार

हर बार

गमावै माजनौ।

स्रोत
  • पोथी : घर तौ एक नाम है भरोसै रौ ,
  • सिरजक : अर्जुनदेव चारण ,
  • प्रकाशक : रम्मत प्रकाशन, जोधपुर
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