भारत माता री जाई, मेवाड़ी रजपूताणी।
चाली रण-वीर पद्मणी, खिलजी रै डेरां खानी॥
सतव्रत री कड़ी परीक्षा, लेवण बैठी जिंदगानी।
कामी नै पाठ पढ़ावण, सजगी जद मात भवानी॥
मैंदी सूं हाथ रचाया, चुड़लै री लाली दमकी।
पगल्यां में पायल बाजी, रखड़ी री चानण चमकी॥
होठां पर नाम पिया रो, मन में सत री सँकळाई।
धण रै हिवड़ै में गूंजी, जुगजुग री सुख-शहनाई॥
मुखड़ै पर तप री आभा, दमदम गरमावण लागी।
बैरी सूं बदळो लेवण, बिजळी सी मन में जागी॥
हाथां ली तेज कटारी, कव्वच भी कड़कण लाग्यो।
नैणां में दावनळ री, लपटां रो सुपनो जाग्यो॥
यौवन पर तेज अनोखो, दीप्यो तो हुयो उजाळो।
दुसमण रै डेरां भीतर, छायो अँधियारो काळो॥
पालखियां धीमै-धीमै, डेरां रै भीतर आई।
खिलजीड़ो राफ तरेड़ी, धरती माता शरमाई॥
लज्जा रो आंचळ भीज्यो, हिमगिरी भी सुबक्यां मेली।
बादळियां घुमड़ण लाग्या, समदर भी आंधी झेली॥
लहरां अँगड़ावण लागी, सूरज रा तेवर तणग्या।
जाग्या धरती रा जाया, बणती रा बाणक बणग्या॥
पालखियां में सूं निकळ्या, रणबंका भेष उघाड़्यो।
दुसमण री करी सफाई, लाखां रो मान पछाड़्यो॥
कामुकता होश भुलायां, डगमग आगै बढ़ चाली।
निर्लज पलकां गरमाई, आंख्यां में घुळगी लाली॥
राणी खिलजी सूं बोली, सुण रै ओ पापी कामी।
जनणी री कूख लजा मत, मत कर सत री बदनामी॥
खिलजी पण मान्यो कोनी, कूकर मद में इतरायो।
अपणी सी करबा लाग्यो, आखिर थो कूकर-जायो॥
इतणै में तोप दड़कू, होग्या सब होश ठिकाणै।
लपलप तलवारां चाली, भाग्यो वो पगां उभाणै॥
तम्बू में जाकै लुकग्यो, खिलजी पड़दै रे ओलै।
थरथरथर घूजण लाग्यो, ‘मालिक या मालिक’ बोलै॥
राणी महलां में चाली, पति नै सागे ले आई।
धरती री लाज बचाई, सतब्रत री आण निभाई॥
इक दिन फिर वो दिन आयो, जौहर री ज्वाळा भभकी।
अगणी री जोत सवाई, लपटां में राणी धधकी॥
धन रे रजथान निराळा, धन-धन थारी सँकळाई।
धन-धन हे धरती-माता, धन थारी पद्मण जाई॥