रब राखै सो रैसी राम
चिड़ो चिड़ी जद चूंच खोलसी
मन मांली तो कैसी राम
रब राखै सो रैसी राम॥
सूखै तरवर एक डाळ पर
सरवर सूखै सूनी पाळ पर
बिलखै बचिया ध्यान काळ पर
खैवण हारी खेसी राम॥
पापी पल रै पाप कारणै
सदियां सोग मनावैली रे
जूण अकारथ जावै ली?
म्हारै गीत री गीता गूंजै
मैं केस्यूं सै सुणसी राम॥
मानव मन इतिहास परख
आ-बात हाथ स्यूं जावैली
रे चिड़ी बाज नै खावैली
म्हारै गीत-गूंज रै साथै
मैं केस्यूं सै सुणसी राम॥
बाट बिसर ग्यो एक बटो ही
आपरै खेत री डांडी खोई
पुरसी थाळी खा ग्यो कोई
में केस्यूं कुण सै’सी राम॥
मन में गैरी एक ठौर पर
एक मोरियो नाचं डोर पर
आखर मंड ग्या ठौर-ठौर पर
बो देसी तूं लेसी राम॥