बांध नहीं पायो कोई सुख-दुख आडी पाळ

खूटी री बूंटी नहीं, नहीं काळ री टाळ

उड़ता पांख-पंखेरू बोलै, चलता चरण भेदड़ो खोलै

लेख लिख्यो दाणै पाणी रो चुगणो पड़सी रे

बीज नै उगणो पड़सी रे।

कठैक ऊगै कठै बिसूजै दाणो-पाणी खेल रचावै

पग-पग भाग भुंवाळी खावै, जुगत जमा काम आवै

कुदरत घाल्या फोड़ा, कष्ट भुगतणो पड़सी रे

बीज नै उगणो पड़सी रे।

मिटै नहीं विघना रा आखर, लखपतिया कगंला हुय जावै

दिन दिन फिरै ठोकरां खावै, दिल पलट्यां लखपत बणजावै

सुख-दुख पैड़ी दोय, उतरणो-चढणो पड़सी रे

बीज नै उगणो पड़सी रे।

खूटै सांस विनासै काया, जद दाणो पाणी मुक जावै

कांम नहीं आवै लूंठाई, हाथी नै कीड़ी खा जावै

समय बड़ो बलवान, गरब नै गळणो पड़सी रे

बीज नै उगणो पड़सी रे।

मत कर जुलम हुयो मतवाळो, ढळी अमर गोडा गळजासी

आज नहीं तो काल बावळा, जुलम कियां चवड़ै जासी

लुक-छिप करियो पाप, अंत में खुलणो पड़सी रे

बीज नै उगणो पड़सी रे।

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य निर्माता शृंखला भीम पांडिया ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : भवानीशंकर व्यास 'विनोद' ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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