ओ घर
जिण मांय मैं रैवूं हूं
अेक जूनै-सूपनै रो है मिटतो अैनाण
भींतां उपरां मंड्योडो है तराड़ रो ठिकाणो
साव जोवण सकै कोई
इण घर री हथेळी उपरां उभरीजती
भाग-रेखड़यां नै
ओ घरियो घिरीजग्यो है तराड़ां सूं
जाणै, करजदार घिरीजग्यो है किराड़ां सूं
मोरी, मोखा, दरूजा‘र किवाड़ां सूं
घिरयोड़ो मैं
देखूं हूं नित दिनुगै
भळभळाट करतोड़ी सोनल-तरवार
अंधारै री छाती उपरां करै वार
छंग जावै नींद री भोडकी
अेक सुपनै री मूंडकी
बोम री टूंकळी उपरा टँग जावै
इयां करतां
गूंथीजै मूंडमाळ
ओ काळी-माई, थारै सारू!
म्हारो अबोल्यो मनड़ो जोवै
सामला
तामावरणी‘र पीळांस्यां मारगां नैं
म्हारी आंधळी-चेतणा
पंपोळै‘र थपथपावैं
रात नै थेपड़ै म्हारी कनपट्यां
अेक अणलोकाळ-भाषा गावैं लोरी
कुण है -
बा अेक रैबाली छोरी ?
बा भाषा है
अेक चीकणो सिलाखंड
जिण उपरां धंस-धंस‘र रगड़ीजै
चन्नण क तरवार
जिकी दिनुगै फेर गूंथसी मुंडमाळ
ओ काळधिराणी कंकाळी!
थारै सारू!
म्हारी ऊपरली पलक है तरवार
तळली है सिलाखंडी भासा
आपसरी रगड़ीजै खासा
नित दिनुगै
मैं जोवूं तराड़ चाल्योड़ी भींतां नैं
भींतां है आस-भरोसा
जिका बोलै नित मोसा
रूपाळी-
मारगां री धूळ रो कांपै काळजो
तरवार-धार पीवणो चावै रगत
गूंथणी चावै मुंडमाळ
औ खप्परधारणी-काळी
थारै सारू!
ओ डील
है भोमली टींगरी रो गुढ्याळो
तरवार सूं काट नाख कपली-कपली
पण म्हारा कंठा री आ
सिलाखंडी-भासा
किणी तरवार सूं
क किणी प्रचंड-प्रहार सूं
नी कट सकै!
कदै नी कट सकै!
आ है अजर-अमर
सैंचन्नण उजास रा अणत विस्तार मांय
है इणरो रैवास
अणत-बोम मांय घूमती आ उल्का
ओ सिलाखंड
थारली तरवार सूं नीं कट सकै!
इणनै कलम-तणी
नैनी-सी छिणी सूं तरास!
कोर दै इणरै उपरां अेक उणियारो
जिको सूंप सकै जीवण नै पतियारो!
आव!
आपां अेक मूरत घड़ा!
सूछत-आतमै री विराट मूरत!
मुंडमाळ रै बदळै
गूंथां सुमनमाळ
कांई कैवै-
मरूथळ मांय फूल कठै सूं आवै ?
फूल आपणा हिरदां रा बागां मांय
घणा-ई है कंवळा-कंवळा!
रंगरंगीला भाव-पै‘प
सोरम सरसांवती आ माळा
कल्याणकरणी काळी!
है थारै सारू!